आखिरकार राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का छत्तीसगढ़ आकर कोयला मांगने की रणनीति काम कर गई है। छत्तीसगढ़ के वन विभाग ने सरगुजा और सूरजपुर जिलों में पड़ने वाले परसा खुली कोयला खदान के लिए वन भूमि के उपयोग की मंजूरी दे दी है।
बताया जा रहा है कि 841.538 हेक्टेयर वन भूमि पर कोयले की खुदाई होगी। खुदाई शुरू करने से पहले इस भूमि पर लगे वन की कटाई होगी। इस परियोजना को शुरू करने से पहले सैकड़ों ग्रामीणों को अपना गांव-घर छोड़ना पड़ेगा। हालांकि प्रभावित होने वाले ग्रामीण लंबे समय से इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं।
वन विभाग द्वारा दी गई मंजूरी के अनुसार छत्तीसगढ़ के सरगुजा और सूरजपुर वन मंडल में आने वाली 841.538 हेक्टेयर वन भूमि को पांच लाख मीट्रिक टन प्रति वर्ष की क्षमता वाली परसा खुली कोयला खदान परियोजना के लिए राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को दी गई है। हालांकि वन विभाग ने इस मंजूरी के साथ 15 शर्तें भी जोड़ी हैं। इसके मुताबिक डायवर्ट किए गए क्षेत्र, प्रतिपूरक वनीकरण के तहत क्षेत्र, मिट्टी और नमी संरक्षण कार्यों, वन्यजीवों के संबंध में ई-ग्रीन वॉच पोर्टल पर डिजिटल मैप फाइल अपलोड करनी होगी। वन भूमि की कानूनी स्थिति नहीं बदलेगी। जंगल को हुए नुकसान के एवज में तीन साल के भीतर नये क्षेत्र में एक हजार प्रति हेक्टेयर की दर से नये पौधे लगाने होंगे। नोडल एजेंसी और खदान संचालक को भारतीय वन्य जीव संस्था, देहरादून की बायो डायवर्सिटी रिपोर्ट में दिए सुझावों पर अमल करना होगा। सेफ्टी जोन की सीमा निर्धारित करनी होगी। खनन की वजह से बाहर का कोई क्षेत्र प्रभावित हुआ तो वहां यथास्थिति बहाल करनी होगी।
लाखों हेक्टेयर जंगल होगा बर्बाद, नदियों पर भी असर
इस कोयला खनन परियोजना से प्रभावित हो रहे हसदेव अरण्य को बचाने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े लोगों के मुताबिक, सरकार ने परसा कोयला खदान के साथ परसा ईस्ट केंते बासन एक्सटेंशन खदान के दूसरे चरण को भी मंजूरी दे दी है। इसकी वजह से एक लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में समृद्ध जैव विविधता वाला जंगल बर्बाद हो जाएगा। इसका असर नदियों पर भी पड़ेगा। सैकड़ों लोगों को अपना गांव छोड़ना पड़ेगा। और इसकी भरपाई कभी भी नहीं हो पाएगी।
गहलोत का छत्तीसगढ़ आना सफल हुआ
ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए राजस्थान इस खदान को अंतिम मंजूरी दिलाने के लिए काफी समय से दबाव बना रहा था। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पिछले महीने इसी काम के लिए रायपुर आए थे। उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ चर्चा की थी। राजस्थान का तर्क था, खदान संचालन नहीं होने से उनके यहां कोयला संकट खड़ा हो गया है। बिजली घरों के संचालन के लिए पर्याप्त कोयला नहीं मिल पा रहा है। बाद में सरकार ने उनकी बात मान ली और परसा कोयला खदान के लिए वन भूमि देने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
फर्जी ग्राम सभा में प्रस्ताव पास कराने का आरोप
केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने जुलाई 2019 में ही परसा कोयला खदान को पर्यावरणीय मंजूरी दे दी थी। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति सहित स्थानीय ग्रामीणों ने आरोप लगाया था, जिस प्रस्ताव के आधार पर यह स्वीकृति दी गई है वह ग्राम सभा फर्जी थी। उनकी ग्राम सभा में इस परियोजना का विरोध हुआ था। सरकार ने बात नहीं सुनी और फरवरी 2020 में केंद्रीय वन मंत्रालय ने परसा कोयला खदान के लिए स्टेज- 1 वन मंजूरी जारी कर दी। अक्टूबर 2021 में इस परियोजना के लिए स्टेज- 2 वन मंजूरी जारी की गई थी। 6 अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सरकार ने भी वन भूमि देने की अंतिम मंजूरी जारी कर दी।
अब भी जारी है ग्रामीणों का विरोध
इस कोयला खदान से प्रभावित फतेहपुर, साल्ही और हरिहरपुर, घाटबर्रा जैसे गांवों के लोगों का विरोध प्रदर्शन अब भी जारी है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकार पर्यावरणीय चिंताओं के साथ उनके अधिकारों पर अतिक्रमण कर रही है। विरोध कर रहे ग्रामीणों ने पिछले साल 300 किलोमीटर की पदयात्रा कर राज्यपाल और मुख्यमंत्री को अपनी तकलीफ बताई थी। फर्जी ग्राम सभा की शिकायत भी की गई थी। उसके बाद भी सरकार ने उसकी जांच नहीं कराई। अब उनके हितों की अनदेखी कर कोयला खदान को मंजूरी दे दी गई है। अब इस परियोजना के पास होने के बाद छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने कहा है कि वह सरकार के इस फैसले का विरोध करती है। आंदोलन ग्रामीणों के संघर्ष में उनके साथ खड़ा रहेगा।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने रखीं पांच मांगें
1- दोनों खदानों की अंतिम मंजूरी को तुरंत वापस लिया जाए।
2- फर्जी ग्राम सभा की शिकायत की जांच कर संबंधित अधिकारियों पर कार्यवाही की जाए।
3- लोकतांत्रित आंदोलन और ग्राम सभा के अधिकारों का सम्मान किया जाए।
4- दबावपूर्वक खनन शुरू करने की कंपनी की कोशिशों पर रोक लगाई जाए।
5- संपूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र को संरक्षित वन क्षेत्र घोषित किया जाए।