Thursday, April 25, 2024
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शनि मंदिरों में आज दर्श भावुक अमावस्या , शनैश्चर जयंती , वट सावित्री व्रत और सोमवती अमावस्या पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़।

ब्यूरो रिर्पोट जाज्वल्य न्यूज जांजगीर चांपा::

वट-सावित्री पर महिलाओं ने रखा व्रत और कन्याओं को हलुवा पूरी और श्रृंगार सामग्री किया भेट ।

पूजा-अर्चना करने से प्रसन्न होकर मनवांछित फल देने हैं , शनि देव

हिंदू-धर्म में हर दिन कोई ना कोई देवी-देवताओं को समर्पित हैं। सभी लोग मन, वचन और कर्म से दर्शन-पूजन करते हैं । आज शनैश्चर जयंती, भावुक अमावस्या और वट-सावित्री व्रत का पर्व जिले में श्रद्धा-भक्ति पूर्वक मनाया गया । शनि जयंती पर विशेष रूप से सिद्ध शनि मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहा । शनिग्रह भगवान शनिदेव को दर्शाता हैं और भारतीय ज्योतिष शास्त्र में नवग्रह के नाम से जाने वाले सभी स्वर्गीय देवताओं में से एक हैं । वास्तव में यह एक नर देवता हैं । जिसकी प्रतिमा गहरें काले रंग के होती हैं, जो कि तलवार या किसी अन्य अस्त्र-शस्त्र के रुप में आती हैं और एक कौआ पर देव विराजमान रहते हैं । शनिदेव अतुलित शक्तियों और गुणों के खान माने जाते हैं इसीलिए इन्हें सूर्य और यम का पुत्र भी कहा जाता हैं । साहित्यकार शशिभूषण सोनी ने बताया कि आज अमावस्या पर शनि मंदिर, चांपा में ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए शनि देव और नवग्रहों का गंध, अक्षत, फ़ूल, धूप-दीप तर्पण और दान करने का समय मिला । वैसे भी वट-सावित्री पर्व पर वटवृक्ष के साथ शनिग्रह पूजना उपयुक्त दिन माना गया हैं । पूजन करने के बाद नवग्रहों को तेल, सिंदूर,चूड़ी टिकली और भोग आदि चढ़ाकर ‘ऊं शनिदेवाय नमः’ और ‘शनै शनिश्चरायनम:’ मंत्र का जाप किया । शशिभूषण सोनी जी ने यह भी बताया कि इस महत्वपूर्ण पर्व में महिलाओं के साथ-साथ बेटियां भी बड़ी संख्या में पहुंची । कन्याओं ने भी शनिदेव के दर्शन करने के साथ वट-वृक्ष की परिक्रमा की । कन्याओं को नैवेद्य , हलुवा-पूरी पोशाक उपहार स्वरुप भेट किया गया । पंड़ित लक्ष्मीनारायण दुबे पुजारी शनि देवस्थान ने कहा कि आज बड़ी संख्या में श्रद्धालु भक्त भगवान शनिदेव की पूजा करने के अलावा पीपल के पेड़ का भी वट-सावित्री व्रत के कारण पूजन करने आई । शनिदेव को सरसों का तेल बहुत पसंद हैं । महिला-पुरुषों ने पीपल के पेड़ का पूजन करके शनि पर तेल चढ़ाये और शुद्ध घी के दीपक भी जलाएं । पूर्व पार्षद श्रीमति शशिप्रभा सोनी ने बताया कि वट सावित्री व्रत में ‘ वट ‘ और ‘ सावित्री ‘ दोनों का ही बहुत महत्व माना जाता हैं। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ पौधे का भी विशेष महत्व होते हैं। शास्त्रों और पुराणों में बरगद में ब्रम्हा विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता हैं। अमावस्या के दिन बरगद के पेड़ की छांव तले बैठकर पूजा अर्चना,व्रत कथा सुनने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती हैं। बरगद का पेड़ अपनी लंबी उम्र के लिए भी जाना जाता हैं इसीलिए यह वृक्ष अक्षयवट के नाम से भी मशहूर हैं । इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए वट वृक्ष और यमदेव की पूजा-पाठ करती हैं और शाम के समय वट की पूजा करने पर ही व्रत को पूरा माना जाता हैं। यह भी कहा जाता हैं कि इस दिन सावित्री व्रत और सत्यवान की कथा सुनने और सुनाने का भी विधि-विधान हैं। शास्त्रों और पुराणों के अनुसार गृहस्थ को इस कथा को सुनना चाहिए। पुण्य दायी कथा के अनुसार सावित्री यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले आई थी । इस व्रत में कुछेक महिलाएं फलाहारी व्यंजन का सेवन भी करती हैं तो वहीं कुछ निर्जला उपवास भी रखती हैं ।

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