जांजगीर चांपा

युक्तियुक्तकरण की काउंसिलिंग में घोटाले की बू, संदेहास्पद ढंग से जारी हुई अतिशेष शिक्षकों की सूची।

 

जांजगीर-चांपा से विशेष रिपोर्ट

शिक्षा विभाग में वर्षों से चली आ रही मनमानी और ‘अपनों को उपकृत करने’ की परंपरा एक बार फिर सवालों के घेरे में है। युक्तियुक्तकरण (Rationalisation) की प्रक्रिया के तहत विद्यालयों में शिक्षकों के पुनर्संयोजन के लिए जारी की गई अतिशेष शिक्षकों की सूची न केवल विषयवार और विद्यालयवार अस्पष्ट है, बल्कि इसमें गंभीर अनियमितताओं की आशंका भी जताई जा रही है।

सूची में पारदर्शिता का अभाव

सूत्रों के अनुसार, कई ऐसे शिक्षक जिन्हें सूची में “अतिशेष” बताया गया है, वर्तमान में स्कूलों में आवश्यक विषय पढ़ा रहे हैं। वहीं कुछ ऐसे शिक्षक, जो वास्तविक रूप से अतिशेष हैं, उन्हें सूची से बाहर रखा गया है। इससे यह संदेह गहराता जा रहा है कि सूची में चयन और निष्कासन एक नियोजित रणनीति के तहत किया गया है।

“आपदा में अवसर” की नई परिभाषा?

कोरोना काल के दौरान चर्चित हुई “आपदा में अवसर” की नीति अब शिक्षा विभाग में एक अलग ही रूप में दिख रही है। आरोप है कि युक्तियुक्तकरण के नाम पर विभागीय अधिकारियों द्वारा चहेते शिक्षकों को मनपसंद स्कूलों में समायोजित करने की कोशिश की जा रही है, और इस प्रक्रिया में पारदर्शिता व योग्यता को दरकिनार किया जा रहा है।

शिक्षक संघों का विरोध

स्थानीय शिक्षकों और शिक्षक संघों ने इस प्रक्रिया पर कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा है कि यदि जल्द ही विषयवार और विद्यालयवार पारदर्शी सूची प्रकाशित नहीं की गई, तो वे आंदोलन के लिए बाध्य होंगे।

विभागीय चुप्पी और बाबूगिरी का बोलबाला

शिक्षक संगठनों का कहना है कि जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) का रवैया भी संदेहास्पद है। यहां तक कि अधिकारी बिना कुछ बाबुओं की ‘स्वीकृति’ के कोई सूची जारी नहीं करते। बाबूगिरी का आलम यह है कि वर्षों से जमे हुए कर्मचारी निर्णय प्रक्रिया में हावी हो गए हैं।

जब इस संदर्भ में डीईओ से प्रतिक्रिया चाही गई, तो उन्होंने इस विषय पर कुछ भी कहने से स्पष्ट रूप से इनकार कर दिया।

अब उठते हैं कुछ गंभीर सवाल:

क्या युक्तियुक्तकरण की प्रक्रिया में राजनीतिक या विभागीय हस्तक्षेप हो रहा है?

क्यों नहीं जारी की गई स्पष्ट विषयवार और विद्यालयवार सूची?

क्या यह योग्य और जरूरतमंद शिक्षकों के साथ अन्याय नहीं है?

क्या इस प्रक्रिया की स्वतंत्र जांच नहीं होनी चाहिए?

शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्र में इस तरह की संभावित गड़बड़ियां सिर्फ प्रशासनिक चूक नहीं कही जा सकतीं। शासन और निगरानी एजेंसियों को इस पर तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है, ताकि शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता और न्याय की पुनर्स्थापना हो सके।

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