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धुरकोट गांव में बालिकाओं ने सुआ नृत्य से जीवंत की लोक संस्कृति, नवरात्रि पर फूहड़ता के बीच दिखा संस्कृति प्रेम

 

जांजगीर-चांपा: नवरात्रि के पावन पर्व पर जब पूरे देश में गरबा और डांडिया का क्रेज चरम पर है, वहीं छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के धुरकोट गांव की बालिकाओं ने सुआ नृत्य के माध्यम से अपनी लोक संस्कृति को जीवंत कर दिखाया। आधुनिकता की चकाचौंध और गरबा के नाम पर परोसी जा रही फूहड़ता से दूर, इन बालिकाओं ने पारंपरिक परिधान धारण कर माता दुर्गा की आराधना की, जिसने पूरे क्षेत्र में एक अलग ही संदेश दिया है।

धुरकोट गांव की बालिकाओं द्वारा प्रस्तुत इस सुआ नृत्य ने ना केवल गांव के लोगों का ध्यान आकर्षित किया बल्कि आसपास के इलाकों में भी चर्चा का विषय बन गया है। जहां एक ओर गरबा का आयोजन कुछ स्थानों पर आधुनिकता और व्यावसायिकता की भेंट चढ़ता जा रहा है, वहीं धुरकोट की बालिकाओं ने अपने पारंपरिक सुआ नृत्य के माध्यम से ग्रामीण संस्कृति की झलक पेश की। यह नृत्य नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा को समर्पित होता है और इसे छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में विशेष मान्यता प्राप्त है।

इस आयोजन में भाग लेने वाले लोगों का कहना है कि गरबा की आड़ में जिस तरह से कुछ स्थानों पर अश्लीलता और भड़काऊ प्रदर्शन हो रहे हैं, उससे संस्कृति प्रेमी लोगों का मोह भंग हो रहा है। इसके विपरीत, सुआ नृत्य जैसे लोक नृत्य हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं और हमारी परंपराओं का सम्मान बनाए रखते हैं।

हिंदू जनजागृति मंच ने भी इस प्रकार के आयोजनों की सराहना करते हुए कहा है कि समाज को अब गरबा जैसे आयोजनों में बढ़ती अश्लीलता और व्यावसायिकता के स्थान पर सुआ नृत्य जैसे सांस्कृतिक आयोजनों से प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होंने इसे एक उत्कृष्ट उदाहरण बताया कि कैसे हमारे लोक नृत्य और त्योहारों का असल मकसद हमारी आस्था और परंपरा को जीवित रखना है, न कि इसे व्यावसायिकता की ओर धकेलना।

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