जांजगीर चांपा

अध्यात्म की नगरी प्रयागराज,जो सनातन के पुरातन होने का साक्ष्य है, इस ज्ञानके महासागर से भारतीय मीडिया ने मंथन कर के, मोनालिशा और आई.टी. वालेबाबा निकाला, यह कितना निराशाजनक है – स्वामी सुरेन्द्र नाथ।

प्रयागराज। सागर मंथन से निकले|अमृत की बूंदें जहाँ- जहाँ गिरीं उन स्थलोंपर कुम्भ का आयोजन होता है, हमारीसनातन परंपरा चिरनूतन है, अर्थात जितनीपुरातन है, उतनी ही वैज्ञानिक है, दुनियासूर्य और चंद्रिमा पर शोध कर रही है, औरहमारे ग्रंथों में समग्र सृष्टि की तथ्यों केसाथ सटीक व्याख्या मिलती है। महाकुम्भ| इसका साक्षात उदाहरण है। जब 11 पूर्णकुंभ हो जाते हैं तब 12वें पूर्ण कुंभ कोमहाकुंभ कहा जाता है, जो 144 साल मेंएक बार लगता है, जो 2025 में आयोजितहै। इतने दुर्लभ और पवित्र संयोग के पूण्यका फल प्राप्त करने, भारत ही नहीं, देश|विदेश से प्रतिदिन श्रद्धालु आ रहे हैं। यहकेवल एक खगोलीय घटना नहीं, जिस|अवसर पर धार्मिक आयोजन किया गया|हो, बल्कि एक जीवंत विरासत भी है जो| भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिकविविधता को प्रदर्शित करती है।

महाकुंभ केवल एक धामिकउत्सव नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज के|लिए आध्यात्मिक उन्नति का अवसर भी है,किन्तु लगता है, भारतीय मीडिया में समाजके सबसे अशिक्षित व पिछड़े लोग भरे हाएहैं, तभी तो सिर्फ इंस्टा, यू ट्यूब,फेसबुक इन्फ्लूएंरों ने बल्क मेन स्ट्रीममीडिया ने भी इन तीन चेहरों पर सारा कुंभकेद्रित कर दिया, क्या तन की खुबसूरती,आंखों की खुवसूरती और एक उच्च|शिक्षित व्यक्ति का बावा बनना यही है कुंभ|की महत्ता. ? यदि कुंभ मे आप यही खोजपाए तो फिर आपको अपने सनातनी होनेपर दोबारा विचार करना चाहिए.. ?

क्या कुंभ का यही महत्व है एक

अध्यात्म के इतने बड़े समुंद्र से हमने चुनाभी तो क्या जो, हमें हर चौराहे पर मिलजाती है, उसको खोजने के लिए हमने कुंभको चुना 144 वर्षों के इस अवसर को हमयूं ही व्यर्थ गंवा रहे हैं, लेकिन थोड़ाविचार करना जुरूरी है, क्या सिर्फ मीडियाका दोष है, नहीं भारतीय मानसिकता हीऐसी हो गयी है, कि अध्यात्म में भीमनोरंजन का पुट चाहिए, इसलिए मीडियावही परोसती है, जो बहसंख्यक लोगों कोपसंद आता है, अतः हम सब का भी उतनाही दोष है, क्योंकि हमने इस अवसर कोइतनी तुच्छ चर्चा में गंवा दिया जहांआध्यात्मिक चर्चा हो सकती थी, जहांसनातन धर्म की चर्चा हो सकती है।!!

अभी एक और नया चलनदेखने में आ रहा है, महामंडलेश्वर बनानेका खेल चल रहा है, जिन लोगों को धर्मके संरक्षण के लिए समाज ने पदवी दिया,वे धन के लोभ में किसी को भी

ज्ञान से परमात्मा को पाया ही नहीं जा सकता, ज्ञान सेअहंकार पैदा होता है, परमात्मा को केवल भक्तिऔर ध्यान से पाया जा सकता है, किन्तु हर सनातनीको स्वधर्म का ज्ञान और उस पर अभिमान होना चाहिए, विडम्बनातो ये है,कि हमें इस महाकूम्भ की महत्ता का ही बोध नहीं है..!

मण्डलेश्वर और महामंडलेश्वर जैसीउपाधियों से सम्मानित कर रहे हैं। मैंकिसी के हृद्य परिवर्तन होने पर अध्यात्मकी शरण में आने को, गलत नहीं मानता,क्योंकि हमारे धर्म में डाकू से ऋृषबाल्मीकि बनाने की क्षमता है, एकअयोग्य को कालिदास जैसे विद्वान मेंपरिवर्तित होने का उदाहरण है, किन्तु अबऐसा लगता है, कि धार्मिक कार्यों के लिएकिसी साधना, तप और ज्ञान कीआवश्यकता नहीं हैं, येनकेन प्रकारेणकिन्ही स्रोंतों से धन कमाया हुआ व्यक्तिभी महामंडलेश्वर बन सकता है। महाकुम्भमें अब हमारा मीडिया और सोशलमीडिया किसी अभिनेत्री के महामंडलेश्वरबनने को कवर कर रही है।

मीडिया को महाकुंभ की महिमाका गुणगान करना चाहिए, और सबसेबडी बात वहाँ प्रवेश करने वाले पत्रकारोंको सनातन संस्कृति व धर्म के बारे में सहीज्ञान होना चाहिए।कैसे नागा साधुओं काआगमन होता है, ये धर्म और राष्ट्र की रक्षामें कैसे समर्पित रहते हैं, इन पत्रकारों कोइसका कोई ज्ञान नहीं, बल्कि एक औरचलन देखने को मिल रहा है, कोई भी दोकौड़ी का इंफ्लुएंसर या पत्रकार 100 रुपयेका नोट लेकर किसी साधु को देने का

लोभ दिखता है, और वाहियात प्रश्नों केउत्तर मांगता है, राम की बहन का नामबताओ, तो पड़ोसी का नाम बताओ, जैसेउलजुलूल प्रश्न कर उन साधुओं कोअपमानित करते हैं। ये जुरूरी नहीं कि हरसाधु वेदों पुराणों का प्रकांड विद्वान ही हो,साधु अपनी साधना और त्याग से ईश्वर कोपा लेते हैं, ज्ञानियों को कहाँ ईश्वर मिलें हैं,ईश्वर तो भक्तों को मिलते हैं, मीराकन्हैया को पा लिया, श्याम रंग में रम गईमीरा और श्याम में ही समाहित हो गई,कबीर हों, रैदास या हमारे गुरु घासीदास,नानक हों या बुद्ध व महावीर इन्होंने ज्ञानका भी त्याग किया और भक्ति में डूबे तोईश्वर का साक्षात्कार हो गया, इसलिए प्रभ्श्रीलराम के खानदान का नाम जानने वालानहीं, राम के नाम में रम जाने वाले को हीप्रभु राम मिलते हैं।अंत में सिर्फ इतना ही निवेदनहै, कि महाकुम्भ जैसे इस दुर्लभ सौभाग्यकी पवित्रता और गरिमा का ध्यान रखें,जन्म जन्मान्तरों का पाप नष्ट करने कीलालशा लेकर श्रद्धाल्ओं की भीड़ उमडरही है, उसे भौतिकता की तुच्छता सेमहाकुम्भ का महात्म्य की महिमा खण्डतन करें।

जय मां गंगे जय महाकाल

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