ब्यूरो रिर्पोट जाज्वल्य न्यूज हिम्मत सच कहने की,जांजगीर चांपा।
8 मार्च 2023, होली के दिन पर डॉक्टर अनीस कुमार सूरजपुर के जिला अस्पताल में मरीजों का इलाज कर रहे थे। तभी नशे धूत में कुछ स्थानीय सिरफिरे अपने धनबल,बाहुबल और रसूख के घमंड में चूर, मरीजों का इलाज कर रहे डॉक्टर से गाली गलौच करने लगे फिर ड्यूटी डॉक्टर के साथ जमकर मारपीट की और अपने जहरीले जुबान से जातिसूचक अपशब्दों का उपहार देकर डॉक्टर को उसकी औकात याद दिलाने लगे।
यह समझ नही आ रहा था कि उन्हें किसका ज्यादा नशा था ।
अपने धनबल का? बाहुबल का ? या रसूख का?
मारपीट के बाद पुलिस ने FIR तो दर्ज कर ली और पीड़ितों और लोगों की आंखों में “धूल झोंकने ” के लिए आरोपियों को पुलिस ने थाने में बैठा भी लिया।
लेकिन इसके बाद इन रसूखदार आरोपियों को बचाने इलाके के 150 -200 लोग इकट्ठे हो गए। इन लोगों की भीड़ बिल्कुल भी हैरान करने वाली नहीं थी।
क्योंकि यह तो पुलिस को यह एहसास कराने आए थे कि लोगों को आंखों में अगर उन्हें “धूल झोकना” है तो भी वह उनके “लाडलो” को थाने में बैठा कर कैसे रख सकते है ? और कानून का यह पाठ पढ़ाने के लिए कि कानून के पन्नों में भी कई छेद होते हैं और किसी भी एक छेद से उनके इन लाडलों को तुरंत निकाला जाए।
यकीन मानिए हुआ भी ऐसा ही-
जो पुलिस दोपहर तक यह कह रही थी कि आरोपियों को पकड़कर हम गिरफ्तार कर रहे हैं, आपके सामने हैं।
वहीं पुलिस रात को भीड़ के आदेश के बाद अगले दिन इन आरोपियों को छोड़ देती है।
पूछने पर जवाब मिलता है की इनको तो “चेक लिस्ट “के आधार पर छोड़ दिया गया है यह जांच में हमको पूरा सहयोग प्रदान करेंगे।
पीड़ित पक्षों को प्रशासन के द्वारा न्याय का यह नया “ट्रेलर” दिखाया गया है
समाज के सामने अब सवाल यह है कि –
#क्या प्रत्येक गंभीर अपराध की प्रकृति में आरोपियों के लिए यही “चेक लिस्ट” का तरीका अपनाया जाता है?
क्या किसी भी गंभीर अपराध में त्वरित कार्यवाही के रूप में आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल में नहीं डाला जाता है?
क्या “एट्रोसिटी एक्ट और मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट” जैसे गंभीर गैर जमानती अपराधों में भी चेक लिस्ट का एक वैकल्पिक तरीका जो कि आरोपियों के लिए एक “संजीवनी” की तरह है का उपयोग कर उन्हें खुलेआम छोड़ना उचित है?
क्या पुलिस कार्यवाही करना चाहती तो उन्हें इस प्रकार के गंभीर अपराधों में गिरफ्तार नहीं कर सकती थी?
एक उच्च अधिकारी से पीड़ित पक्ष के एक सामाजिक प्रतिनिधि द्वारा यह पूछने पर कि इतने गंभीर अपराधों में चेक लिस्ट का तरीका अपनाकर अगर अपराधियों को छोड़ दिया जाता है तो क्या और लोग भी इसी प्रकार का अपराध करेंगे तो उन्हें भी प्रत्येक मामलों में चेक लिस्ट के द्वारा छोड़ दिया जाएगा? शायद अधिकारी के पास इसका उत्तर नहीं था।
क्या बेहद गंभीर प्रकृति के अपराध में भी “चेकलिस्ट नामक अमृत” पिला कर अपराधियों को खुलेआम इज्जत देना पीड़ित पक्ष का मनोबल तोड़ने वाला और अपराधियों का मनोबल ऊंचा करने वाला नहीं है?
क्या प्रशासन और शासन द्वारा ऐसे प्रकरणों में समाज को एक अच्छा संदेश दिया जा रहा है?
हो सकता है हमें कानून का ज्ञान नहीं परंतु इतना जरूर पता है कि पुलिस जब कार्यवाही करना चाहती है तो हलके मामलों में भी लोग कई दिनों तक जेलों में सड़ते रहते हैं।
और पुलिस को जब कार्यवाही नहीं करनी होती तो गंभीर प्रकृति के अपराधों में भी “चेक लिस्ट की संजीवनी बूटी” देकर अपराधियों को पुरस्कृत किया जाता है।
क्या यही सामाजिक न्याय का सिद्धांत है?
क्या यही पुलिस और प्रशासन की निष्पक्षता और पीड़ित पक्ष का सहयोग है?
यह पूछे जाने पर क्या यह सही है अधिकारियों के द्वारा यह जवाब दिया जाता है कि हमारे द्वारा पुराने जांच अधिकारी को हटाकर कर दूसरे उच्चाधिकारी को जांच अधिकारी को नया गया है।
जांच अधिकारियों को बदला जाना एक अच्छी रणनीति के तहत अपने पक्षपाती कार्रवाई में पर्दा डालने की कवायद है।
प्रशासन और शासन को हम यह कहना चाहेंगे कि “हमें माफ कीजिएगा” ऐसी न्याय की अपेक्षा आपसे, हमें बिल्कुल भी नहीं थी।
हम तो अल्प ज्ञानी हैं लेकिन कानूनी जानकारों द्वारा ऐसा कहा जाता है न्याय होने के साथ-साथ न्याय होते हुए “दिखना” भी चाहिए।
इस प्रकरण में न्याय होते हुए तो नहीं लेकिन” न्याय की धज्जियां” उड़ते हुए जरूर दिखाई दे रहा है।
#भविष्य में इस प्रकार के प्रकरणों के लिए सूरजपुर का केस एक नजीर नहीं बन जाएगा?
कि “एट्रोसिटी एक्ट एवं मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट” जैसे गंभीर गैर जमानती धाराओं के तहत दर्ज एफआईआर में भी में अपराधियों को “चेकलिस्ट “के आधार पर छोड़ दिया जाएगा ।
फिलहाल प्रशासन द्वारा किए गए इस तथाकथित न्याय और “बेहतरीन सामाजिक सन्देश तथा उपहार ” को हम स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है।
ऐसी स्थिति में न्याय के प्रयास के तौर पर अपनी निरंतर दी जाने वाली समर्पित सेवा में रोक लगाना ही विकल्प प्रतीत होता है।
छत्तीसगढ़ में डॉक्टरों पर की जाने वाली हिंसा के विरुद्ध विरोध करने, न्याय दिलाने तथा हिंसा रोकने के उद्देश्य से बनी “छत्तीसगढ़ डॉक्टर्स ज्वाइंट एक्शन कमिटी” ( UDFA,JUDO, REGULAR JUDA, FMG, Medical Teacher’s Association एवम CIDA )द्वारा सर में बैंडेज लगा कर राज्यभर में विरोध दर्ज किया जा रहा है एवम सोमवार के दिन भारत की प्रथम शहीद महिला स्वतंत्रता सेनानी वीरांगना अवंती बाई लोधी जी के बलिदान दिवस के स्मृति एवम अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने के प्रतीक के रूप में ऐच्छिक अवकाश लिया जा रहा है। इसके बाद भी कोई कार्यवाही न होने पर छत्तीसगढ़ की समस्त डॉक्टर्स से कार्य बहिष्कार की अपील की जाएगी। इस असमर्थता के दौर में छत्तीसगढ़ की जनता से यही सहयोग चाहिए कि इस दौरान चिकित्सकीय सेवाओं में होने वाली असुविधा के लिए समस्त चिकित्सा समुदाय को “क्षमा करें”।
चिकित्सा समुदाय के लिए ऐसे बेहद ही असुरक्षित, अपमानजनक, असामान्य, संवेदनहीन वातावरण में हमारी छत्तीसगढ़ सरकार से कुछ आवश्यक मांगे हैं। जिस पर सरकार को गंभीरता पूर्वक विचार कर सार्थक पहल करने की आवश्यकता है।
1) सभी मेडिकल वायलेंस के प्रकरण में 24 घंटे के भीतर सभी आरोपियों की गिरफ्तारी अनिवार्य रूप से होनी चाहिए।
2) प्रत्येक डॉक्टर को लाइसेंस के साथ रिवाल्वर दिया जाए जिससे वह स्वयं की सुरक्षा कर सकें।
3) चिकित्सकों एवं चिकित्साकर्मियों से किसी भी प्रकार की अभद्रता एवं हिंसा की स्थिति में इंस्टीट्यूशनल एफ. आई. आर. कंपलसरी किया जाए और इसके लिए दिशानिर्देश वह गाइडलाइन राज्य सरकार द्वारा जारी किए जाएं।
4) किसी भी प्रकार का वायलेंस होने पर संबंधित डॉक्टर को 15 दिन की विशेष अवकाश की पात्रता का प्रावधान किया जाए।
5) स्वास्थ्य विभाग में ठेका सिस्टम बंद किया जाए एवं इसके स्थान पर सिक्योरिटी गार्ड्स की नियमित भर्ती की जाए, तब तक प्रत्येक सिक्योरिटी गार्ड की सैलरी न्यूनतम 25000 प्रति माह किया जाए।
ताकि वह बेहतर व सुरक्षित वित्तीय स्थिति में अधिक समर्पण भावना के साथ अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकें।