
जांजगीर-चांपा : जिले में इन दिनों पोस्टरबाजी का दौर लगातार जारी है। नेता एक-दूसरे को नीचा दिखाने और अपनी मौजूदगी जताने के लिए शहर की दीवारों पर पोस्टर चिपकाने में पीछे नहीं रहते, लेकिन सवाल यह है कि इस पोस्टरबाजी के पीछे छिपा असली विकास कब बाहर आएगा?जिले में मंत्रियों का आना-जाना लगा रहता है। मुख्यमंत्री स्वयं दो से तीन बार जिला मुख्यालय पहुंच चुके हैं, वहीं दोनों उपमुख्यमंत्री भी कई-कई बार दौरा कर चुके हैं। इसके अलावा प्रभारी मंत्री भी कई बार जिले का दौरा कर चुके हैं। लेकिन बार-बार के इन दौरों का कोई ठोस नतीजा अब तक सामने नहीं आया। विकास की रफ्तार आज भी वहीं की वहीं अटकी हुई है।स्थानीय नेता विकास की मांग करने और ठोस कार्यों के लिए पहल करने के बजाय आपसी खींचतान और पोस्टरबाजी में व्यस्त दिखाई देते हैं। इससे आम जनता में यह निराशा बढ़ती जा रही है कि आखिर जांजगीर-चांपा का भविष्य किस दिशा में जाएगा।पूर्व सरकार के समय सत्ता पक्ष का विधायक न होने का दंश जिले ने झेला था। अब भी स्थिति लगभग वैसी ही बनी हुई है। जिले में किसी भी सत्तारूढ़ दल का विधायक न होना विकास कार्यों में बाधा बन रहा है। कागजों पर बड़े-बड़े नेता जरूर दिखते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि उनका हस्तक्षेप विकास कार्यों को और उलझा देता है।इधर, जिले में विकास तो नहीं हो रहा पर जिला खजाना लगातार खाली किया जा रहा है। इसका बड़ा उदाहरण हाल ही में हुई विकास प्राधिकरण की बैठक है, जिसमें करोड़ों रुपए खर्च किए गए। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि धन खर्च तो खूब हो रहा है, मगर विकास कार्य धरातल पर दिखाई नहीं दे रहे।अब देखने वाली बात होगी कि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और नगरी प्रशासन मंत्री इस बार नगर पालिका सहित जिले को क्या सौगात देते हैं। जनता की नजरें इस बात पर भी टिकी हैं कि स्थानीय नेता आखिर कौन-से ठोस विकास कार्य की मांग रखते हैं, जिन पर तत्काल घोषणा होकर काम शुरू हो सके।पिछली सरकार बनने के बाद से अब तक जिले को कोई बड़ी सौगात नहीं मिली है। इसका सबसे बड़ा कारण माना जा रहा है स्थानीय राजनीतिक गुटबाजी, आपसी खींचतान और वर्चस्व की लड़ाई, जिसके कारण जांजगीर-चांपा का विकास लगातार पिछड़ता जा रहा है।