
चांपा में जघन्य अपराधों से दहशत – अब समाज को लेना होगा कठोर सबक
दो माह में दो गैंगरेप की घटनाओं ने पूरे जिले को हिला दिया है। नारों से आगे बढ़कर अब समाज और प्रशासन दोनों को ठोस कदम उठाने होंगे।
लगातार वारदातों से दहला जिला
जांजगीर-चांपा जिले में लगातार हो रही जघन्य वारदातों से केवल चांपा शहर ही नहीं, बल्कि पूरे जिले में उबाल की स्थिति है। इन घटनाओं के लिए जहां अपराधी मानसिकता जिम्मेदार है, वहीं बिना रोक-टोक के आयोजित कार्यक्रम और लापरवाह तैयारियाँ भी बड़े कारण बन रहे हैं। अगर समाज और युवा समय पर नहीं जागे, तो वह दिन दूर नहीं जब भीड़ के बीच से किसी बेटी को उठा ले जाने जैसी अनहोनी घट जाए।
अपराध के बाद मौन क्यों?
बीते दो महीनों में चांपा क्षेत्र में हुए दो गैंगरेप सिर्फ अपराध नहीं, बल्कि समाज और व्यवस्था की विफलता का आईना हैं। हर घटना के बाद कुछ दिन तक आक्रोश और बयानबाजी होती है, फिर सब सामान्य हो जाता है। यही चुप्पी अपराधियों को और अधिक ताकत देती है।
सिर्फ नारे नहीं, ठोस कार्रवाई की जरूरत
“बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” का नारा तभी सार्थक होगा जब इसे जमीनी स्तर पर उतारा जाए। त्योहार और बड़े आयोजन दरिंदों के लिए आसान मौका बनते जा रहे हैं, लेकिन हमारी सुरक्षा तैयारियाँ नाकाफी साबित हो रही हैं।
चुप्पी से अपराध को बल मिलता है
आज केवल चांपा नहीं, बल्कि पूरे जिले में आक्रोश है। लोगों का गुस्सा इस बात पर भी है कि सार्वजनिक आयोजनों पर कोई पाबंदी या सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित नहीं होती। बिना पर्याप्त इंतज़ाम के आयोजित मेले और उत्सव असामाजिक तत्वों को वारदात करने का अवसर देते हैं।
अश्लीलता और फूहड़ता वाले आयोजनों का विरोध जरूरी है। नारी शक्ति और सामाजिक संगठन केवल नारों और मंचों तक सीमित न रहें, बल्कि समाज में जागरूकता फैलाएँ। हर नागरिक को संदिग्ध गतिविधि देखकर आगे आना चाहिए, चुप्पी अपराधियों को बचाती है।
प्रशासन और पुलिस की भूमिका
अब केवल बयानबाजी से काम नहीं चलेगा। महिला पुलिस बल की तैनाती, सीसीटीवी कैमरों से निगरानी, रात में गश्त और त्वरित कार्रवाई ही अपराध पर अंकुश लगा सकती है।
दशहरा पर्व पर विशेष चौकसी जरूरी
चांपा में दशहरा आयोजन को लेकर उत्साह चरम पर है। फिल्म अभिनेत्री मंदाकिनी के आने की खबर से भारी भीड़ जुटने वाली है। लेकिन इसी भीड़ में अपराधी मानसिकता के लोग भी छिपे हो सकते हैं। ऐसे में आयोजकों, पुलिस और समाज सभी की जिम्मेदारी है कि चौकसी बढ़ाएँ और बेटियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
छिपाए जाते हैं बड़े घराने के मामले
समाज की एक और कटु सच्चाई यह है कि जब ऐसे अपराधों में बड़े घरानों के लोग शामिल होते हैं, तो मामला अक्सर दबा दिया जाता है। हर वर्ग के लोग सच छिपाने के लिए आगे आ जाते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल कानून को कमजोर करती है, बल्कि अपराधियों के हौसले भी बढ़ाती है। अगर हम बेटियों की सुरक्षा चाहते हैं, तो सच को उजागर करना ही होगा – चाहे आरोपी कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो।
स्पष्ट संदेश
यह समय केवल आक्रोश और शोक का नहीं, बल्कि आत्ममंथन और ठोस कदम उठाने का है। बेटियों की सुरक्षा केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे समाज की सामूहिक जिम्मेदारी है।
अब वक्त नारों का नहीं, बल्कि कार्रवाई का है। अगर समाज नहीं जागा, तो चांपा जैसी घटनाएँ बार-बार होंगी और हर बार हम केवल आँसू बहाने को मजबूर रहेंगे।