नियमों को ताक पर रखकर टेंडर प्रक्रिया, चहेतों को ठेका दिलाने की तैयारी!

जांजगीर-चांपा जिले में टेंडर प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। नियमों को दरकिनार कर अधिकारियों की मनमानी साफ तौर पर देखने को मिल रही है। आरोप है कि छोटे-छोटे कार्यों को मिलाकर बड़े टेंडर के रूप में निकाला गया है, ताकि पात्र ठेकेदारों को वंचित कर चहेतों को ठेका दिलाया जा सके।जानकारी के अनुसार सिविल और विद्युत कार्यों को अलग-अलग निकाले जाने के बजाय एक साथ टेंडर जारी किया गया है। नियमों के अनुसार 1 करोड़ से ऊपर के कार्यों के लिए ही संयुक्त टेंडर निकालने का प्रावधान है, लेकिन यहाँ छोटे-छोटे कार्यों को भी जोड़कर एक बड़ा टेंडर बना दिया गया है। इससे न केवल छोटे ठेकेदार वंचित होंगे, बल्कि योग्य लोग भी अपात्र के अधीन काम करने के लिए मजबूर हो जाएंगे।इस पूरे मामले में RES की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक इस मनमानी में डीए की भूमिका प्रमुख मानी जा रही है। हालाँकि, डीए का कहना है कि इस प्रक्रिया में उनका कोई रोल नहीं है।
जब इस विषय पर ईई पैकरा से जानकारी ली गई तो उन्होंने कहा कि
“यदि सिविल ठेकेदार को कार्य मिलता है तो वह विद्युत कार्य के लिए अधिकृत विद्युत ठेकेदार से अनुबंध कर कार्य कराएगा। इस प्रक्रिया में किसी तरह की अनियमितता नहीं है।”
फिर भी यह सवाल जस का तस बना हुआ है कि जब नियम स्पष्ट तौर पर सिविल और विद्युत कार्यों को अलग-अलग टेंडर करने का प्रावधान रखते हैं, तब उन्हें एक साथ जोड़कर टेंडर क्यों निकाला गया?
स्थानीय ठेकेदारों ने आशंका जताई है कि इस प्रकार की टेंडर प्रक्रिया से पारदर्शिता पर प्रश्नचिह्न लग गया है और यह सीधे-सीधे चहेते ठेकेदारों को लाभ पहुँचाने की कवायद है।














