ट्रैफिक जवान का बेटा रुतबा दिखाने सरकारी वाहन पर फर्राटे… बाप का रुतबा कानून से बड़ा या होगी नियमानुसार कार्यवाही।

जांजगीर-चांपा में एक तरफ पुलिस कप्तान सड़क हादसों को रोकने के लिए बड़े-बड़े अभियान चला रहे हैं, और रिकॉर्ड बना रहे हैं…तो वहीं दूसरी तरफ, ट्रैफिक विभाग में बैठे कुछ लोग, उस मेहनत पर पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।सरकारी वाहन पर फर्राटे भरते एक जवान के बेटे का वीडियो सामने आया है… जो खुलेआम कानून की धज्जियां उड़ा रहा है… और इस बार मामला सिर्फ ट्रैफिक नियम तोड़ने का नहीं… बल्कि सरकारी संपत्ति के खुलेआम दुरुपयोग का है साथ ही वो इसी तरह पिता जवान के बदले बेटा ही उपयोग करता है।
आज शहर में पुलिस कप्तान ने “एक हेलमेट भाई के नाम” अभियान के तहत सड़क सुरक्षा को लेकर बड़ा रिकॉर्ड बनाया।
1000 से ज्यादा हेलमेट लोगों को मुफ्त बांटे गए, ताकि हादसों में कमी आए और लोगों में ट्रैफिक नियमों के प्रति जागरूकता बढ़े।
लेकिन… ठीक इसी दिन… चौपाटी इलाके में एक नज़ारा ऐसा भी दिखा, जिसने पूरे अभियान की सोच को ठेंगा दिखाने प्रयास कर दिया।
CG–03–8001 नंबर का सरकारी दोपहिया वाहन… जिस पर साफ-साफ “ट्रैफिक” लिखा है…हैंडल पर न कोई जवान… न ड्रेस… न हेलमेट… बल्कि जवान का लाडला बेटा, बेखौफ सड़कों पर फर्राटे भर रहा है।
शॉपिंग के लिए आना-जाना… पब्लिक प्लेस पर बाइक खड़ी करना… और चारों तरफ ये दिखाना कि “ये बाप का रुतबा है, कोई छू नहीं सकता”।
विडंबना देखिए… यही ट्रैफिक जवान, आम लोगों को मामूली गलती पर रोककर चालान काटते हैं…लेकिन जब नियम उनके अपने घर में टूटते हैं… तो कानून के पन्ने बंद कर दिए जाते हैं।
क्या ट्रैफिक नियम सिर्फ आम जनता के लिए हैं?
क्या सरकारी संसाधनों को निजी मौज-मस्ती के लिए इस्तेमाल करना जायज है?
जिले के एसपी अपनी सख्ती के लिए मशहूर हैं।लेकिन इस मामले में अब सभी की निगाहें उनके फैसले पर टिकी हैं।क्योंकि यह मामला सिर्फ एक वाहन के दुरुपयोग का नहीं…
यह ट्रैफिक विभाग की साख, अनुशासन और कानून की बराबरी का भी है।
जांजगीर-चांपा की चौपाटी पर, जहां ये सरकारी ट्रैफिक वाहन खुलेआम निजी उपयोग के लिए इस्तेमाल किया गया।स्थानीय लोगों का कहना है कि ऐसे मामलों में तुरंत सस्पेंशन की कार्रवाई होनी चाहिए और यातायात से छुट्टी ताकि कोई भी जवान सरकारी संपत्ति को अपना निजी खिलौना न समझे।
“अगर आम आदमी करे तो चालान, और जवान का बेटा करे तो छूट… ये कहां का न्याय है?”
“एसपी साहब को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए… नहीं तो ये सिलसिला कभी खत्म नहीं होगा।””सरकारी वाहन सिर्फ ड्यूटी के लिए हैं, मौज-मस्ती के लिए नहीं।”
अब सवाल साफ है… क्या कानून सबके लिए बराबर है?
क्या ट्रैफिक विभाग में बैठे कुछ लोग अपने घरवालों को नियमों से ऊपर मानते हैं?और सबसे बड़ा सवाल… क्या इस जवान पर भी वैसी ही सख्ती होगी, जैसी आम जनता पर होती है?
जवाब का इंतजार… और जनता की निगाहें… अब सीधे एसपी ऑफिस पर हैं।
अगर कानून को बचाना है… तो कानून तोड़ने वालों पर एक जैसा डंडा चलना चाहिए…चाहे वो कोई आम आदमी हो… या वर्दीधारी का अपना घर का सदस्य।अब देखना होगा… एसपी साहब का अगला कदम क्या होता है।












