जांजगीर चांपा

उपाध्याय परिवार में आयोजित भागवत कथा में कृष्ण-सुदामा चरित्र की कथा।

ब्यूरो रिर्पोट जाज्वल्य न्यूज़ ,जांजगीर चांपा।

जांजगीर-चाम्पा। कृष्ण-सुदामा की मित्रता बहुत प्रचलित है। सुदामा गरीब ब्राह्मण थे। अपने बच्चों का पेट भर सके उतने भी सुदामा के पास पैसे नहीं थे। उक्त उदगार पुरानी बस्ती के प.विनोद उपाध्याय परिवार में आयोजित श्रीमद् भागवत में व्यासपीठ पर बैठे पंडित दुर्गा प्रसाद प.दुर्गा प्रसाद चतुर्वेदी भैसमूडी ने कही। श्री चतुर्वेदी ने आगे की कथा सुनाते कहा कि सुदामा की पत्नी ने कहा हम भले ही भूखे रहें, लेकिन बच्चों का पेट तो भरना चाहिए न ?” इतना बोलते-बोलते उसकी आँखों में आँसू आ गए। सुदामा को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने कहा क्या कर सकते हैं ? किसी के पास माँगने थोड़े ही जा सकते है। पत्नी ने सुदामा से कहा आप कई बार कृष्ण की बात करते हो। आपकी उनके साथ बहुत मित्रता है ऐसा कहते हो। वे तो द्वारका के राजा हैं। वहाँ क्यों नहीं जाते ? जाइए न ! वहाँ कुछ भी माँगना नहीं पड़ेगा। सुदामा को पत्नी की बात सही लगी। सुदामा ने द्वारका जाने का तय किया। पत्नी से कहा, “ठीक है, मैं कृष्ण के पास जाऊँगा। लेकिन उसके बच्चों के लिए क्या लेकर जाऊँ ? सुदामा की पत्नी पड़ोस में से पोहे ले आई। उसे फटे हुए कपडे में बांधकर उसकी पोटली बनाई। सुदामा उस पोटली को लेकर द्वारका जाने के लिए निकल पड़े।

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