विश्व पर्यावरण दिवस केवल मनाने से कुछ नहीं होगा, हामरे आसपास का वातावरण रहने योग्य बनाये रखने के लिए, हमें धरातल पर प्रयास करना होगा..स्वामी सुरेन्द्र नाथ।

ब्यूरो रिर्पोट जाज्वल्य न्यूज जांजगीर चांपा::
हसदेव अभयारण्य बचाओ….
अपना कल बचाओ….
हम हर 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाते हैं, लेकिन विश्व की चिंता करने वाले और बड़े-बड़े कार्यक्रमों का आयोजन में भाग लेने वाले, नेता अपनी जनता के बारे में, खासकर वो आदिवासी समुदाय जिनके जीवन का आश्रय ही जंगल है, उनके बारे में नहीं सोचते, वनों में रहने वाले, कितने पशु पक्षी आश्रयविहीन हो जाएंगे, इसपर विचार किये बिना ही, वनों को काटकर, उद्योग लगाने की अनुमति दे देते हैं।
मैं आज विश्व पर्यावरण दिवस पर सरकारों(केंद्र व राज्य) से करबद्ध प्रार्थना करता हूं कि वे छत्तीसगढ़ के हसदो अभ्यारण्य की कटाई पर पुनः विचार करें, तथा इसका कोई विकल्प तलाशें, ताकि विशाल जंगल कटने से बचाया जा सके।
प्रकृति ही प्राण दायिनी वायु प्रदान कर सकती है, मनुष्य कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो प्रकृति से शक्तिशाली नहीं हो सकता, इसलिए सुविधाओं और उन्नति के लिए बिजली की आवश्यकता तो है, लेकिन पहले मनुष्य को जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता है। माना कि पैसों से भोग-विलासिता की सभी सुविधाएं खरीदी जा सकती हैं, लेकिन धनवान और ताकतवर लोग भी प्रकृति के अनुकूल आचरण कर के ही जीवित रह सकते हैं, धन की ताकत से नहीं, वैसे भी प्रकृति के विरुद्ध आचरण के कारण आये दिन प्राकृतिक आपदा, भौतिक और दैहिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है, ये आपदाएं संकेत मात्र हैं, यदि अब भी पैसों और सुविधाओं की लालसा में प्रकृति को क्षति पहुंचाया जाता रहा, तो जीवन ही नहीं बचेगा..!
हम सब को पता है, कि जंगल नहीं रहेगा तो जीवन भी नहीं बचेगा, लेकिन लगता है सरकार में बैठे हमारे नेताओं को, उधोगपतियों को, और उनके परिवार में बैठे लोगों को ऑक्सीजन की ज़रूरत नहीं है? तभी तो सरकारें मात्र दो प्रतिशत कोयले के खनन के लिए दो लाख से ऊपर पेड़ों को काटने जा रही है।
कटते जंगल और बढ़ते औद्योगिक निर्माण के कारण वातावरण का तापमान पहले से कई प्रतिशत बढ़ चुका है, फिर भी विकास की आवश्यकता बताकर पेड़ों की कटाई लगातार हो रही है। एक तरफ सरकार वृक्षारोपण की बात करती है वहीं दूसरी तरफ खड़े जंगलों को काटने की अनुमति भी देती है, यह जानते हुए कि इन जंगलों को काटने से पशु पक्षी और जंगलों पर आश्रित आदिवासी समाज पूर्णतः प्रभावित होंगे, जनता सरकारों के दोहरे बर्ताव से असमंजस में है! एक तरफ तो सरकार नारे लगाती कि- “वृक्ष नहीं मित्र हैं, वृक्ष को मित्र बनाओ वृक्ष बचाओ” और दूसरी तरफ लाखों वृक्षों से भरे घने जंगलों को काट कर खनन की अनुमति भी दे देती है, इसका अर्थ है कि मित्र काटे जा सकते हैं..!
यदि आज हम वृक्षारोपण करते हैं, तो एक पेड़ को तैयार होने में 25 से 30 साल लग जाते हैं, 30 सालों में एक व्यक्ति का 80% जीवन समाप्त हो जाता है, पीढ़ियां बदल जाती हैं, इसलिए नए वृक्ष लगाना तो आवश्यक है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को वृक्ष लगाना चाहिए, उसकी सेवा करनी चाहिए, किंतु प्रकृति प्रदत हरियाली को बचाना हमारा परम कर्तव्य है। हमारे पूर्वजों की धरोहर की रक्षा के लिए और आने वाली पीढ़ी की जीवन रक्षा के लिए जंगलों को काटने से बचाना परम आवश्यक है।
हम चाहे कितनी ही सेटेलाइट बना ले चाहे कितने ही ग्रहों की खोज कर लें, लेकिन रहना तो इस धरती पर ही है, केंद्र की सरकार हो, या राज्य सरकार, यदि सरकारें यह सोचती हैं, कि जंगलों को काट कर खदानें बना दी जाएं और राजस्व इकट्ठा कर ले या सरकार में बैठे लोग यदि ये सोचते हैं कि हम अपना भविष्य सुरक्षित कर लिए बाकी जनता का भविष्य भले अंधकार में हो, या पीड़ा से भरा हो तो हमें क्या…, हम और हमारे लोग तो सुरक्षित हैं, तो वे भ्रम में है, प्रकृति के विनाश से सभी को क्षति होगी, कोई बच नहीं पाएगा। हमने बड़े-बड़े नेताओं को बनते और बिगड़ते देखा है, जो कभी सड़क पर था उसे आकाश की ऊंचाई छूते, सफलताओं के शिखर पर भी देखा है और जन धन और समृद्धि के मालिकों को फर्श पर बिखरते भी देखा है। प्रकृति जब न्याय करती है, तो आम और खास का फर्क नहीं करती….!

जब हम बचेंगे तभी तो विश्व पर्यावरण दिवस मनाएंगे, स्वयं को बचाना है तो, जंगल बचना होगा…।
क्योंकि कोरोना ने पूरे विश्व को प्रकृति से खिलवाड़ करने का सबक सिखाया है, यदि हम अब भी सचेत न हुए तो न जाने आगे औऱ कैसी आपदाएँ झेलनी पड़ेगी।











