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महुआ पेड़ बचाओ अभियान

मनेंद्रगढ़ पूर्व की कांग्रेस सरकार ने अपने पाँच वर्षीय कार्यकाल में गोबर और गौठान पर विशेष फोकस किया था। हर गाँव में गौठान बनाए गए, लेकिन आज ये गौठान खाली और बंजर पड़े हैं। प्रदेशभर में बने लगभग 8 हज़ार गौठानों पर औसतन 50 लाख रुपए तक खर्च हुआ, बावजूद इसके गाँव की मूलभूत जरूरतें पूरी नहीं हो सकीं। नतीजा यह हुआ कि इन गौठानों में अब अतिक्रमण और असामाजिक गतिविधियाँ बढ़ने लगीं और ग्रामीणों में पिछली सरकार की नकारात्मक छवि बन गई।

लेकिन इसी बीच मनेंद्रगढ़ वनमंडल के DFO मनीष कश्यप ने एक अनोखी पहल कर इन बंजर पड़े गौठानों को नया जीवन देने का बीड़ा उठाया है। उनके नेतृत्व में शुरू हुए “महुआ बचाओ अभियान” के तहत इन खाली गौठानों को अब महुआ पेड़ों से हराभरा किया जा रहा है।

गौठानों में महुआ पौधों की रोपाई

वन विभाग ने सबसे पहले गौठानों की टूटी-फूटी फेंसिंग को दुरुस्त किया, जिससे अतिक्रमण और चोरी रुके। इसके बाद अब तक 98 गौठानों में लगभग 60 हज़ार महुआ के पौधे रोपे जा चुके हैं। इसके लिए हर ग्राम पंचायत से NOC ली गई और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में पौधारोपण की शुरुआत की गई।

 

महुआ पेड़ के महत्व को देखते हुए ग्रामीणों में भी इस अभियान के प्रति उत्साह देखा जा रहा है। पिछले वर्ष ग्रामीणों को 30 हज़ार ट्री गार्ड उपलब्ध कराए गए थे, जिसके अंतर्गत गाँवों और बाड़ी में पौधे लगाए गए। इस वर्ष अब तक 1.12 लाख महुआ पौधे लगाए जा चुके हैं, जिनमें से –

30 हज़ार पौधे ग्रामीणों को ट्री गार्ड में दिए गए

22 हज़ार पौधे बाड़ी में लगाए गए

60 हज़ार पौधे गौठानों में रोपे गए

महुआ पेड़ की घटती संख्या पर चिंता

महुआ का पेड़ आदिवासी जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसकी औसत आयु 60 वर्ष होती है। छत्तीसगढ़ के बस्तर और सरगुजा अंचल में जंगल के बाहर महुआ पेड़ों की संख्या तेजी से घट रही है। वजह यह है कि ग्रामीण फूल बीनने से पहले जमीन को आग से साफ़ कर देते हैं, जिससे कोई भी नया पौधा जीवित नहीं रह पाता। इसके अलावा ग्रामीण महुआ बीज भी पूरी तरह संग्रह कर लेते हैं, जिससे इनके प्राकृतिक पुनरुत्पादन की संभावना खत्म हो जाती है।

आदिवासी परिवार एक बड़े महुआ पेड़ से औसतन 2 क्विंटल फूल और 50 किलो बीज प्राप्त कर लेता है, जिसकी कीमत लगभग 10 हज़ार रुपए होती है। ऐसे में महुआ पेड़ की संख्या घटने से उनकी आजीविका पर संकट मंडरा रहा है ।

DFO मनीष कश्यप को राष्ट्रीय सम्मान

 

मनेंद्रगढ़ वनमंडल के इस अभियान की देशभर में सराहना हो रही है। पिछले वर्ष ही इस कार्य के लिए 2015 बैच के IFS अधिकारी मनीष कश्यप को दिल्ली में “नेक्सस ऑफ गुड” फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया।

महुआ का पेड़ आदिवासियों के लिए आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। भारत के उत्तर, दक्षिण और मध्य के 13 राज्यों में पाया जाने वाला यह वृक्ष प्रकृति का दिया हुआ एक बहुमूल्य उपहार माना जाता है।

भविष्य की राह

“महुआ बचाओ अभियान” ने यह साबित कर दिया है कि यदि सही सोच और पहल हो तो किसी भी असफल योजना को सफल मॉडल में बदला जा सकता है। गौठानों में लगाए गए महुआ पौधे आने वाले वर्षों में न सिर्फ हरियाली लौटाएँगे बल्कि ग्रामीणों की आय का भी प्रमुख स्रोत बनेंगे।ग्रामीण अब उम्मीद जता रहे हैं कि इस अभियान को अन्य जिलों और राज्यों में भी अपनाया जाना चाहिए, ताकि महुआ पेड़ की घटती संख्या को बचाया जा सके और आदिवासी परिवारों को स्थायी आजीविका मिल सके।

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