हसदेव जंगल पर संकट: कटते पेड़ों के साथ बुझती छत्तीसगढ़ की जीवनधारा काजल कसेर।

छत्तीसगढ़ का हसदेव जंगल, जो लगभग 1 लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है, केवल एक हरित क्षेत्र नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के प्राणों की तरह है। आज जब विश्व भर में तापमान बढ़ रहा है, जलवायु परिवर्तन नई आपदाओं को जन्म दे रहा है, और भूजल स्रोत सूखते जा रहे हैं, ऐसे समय में हसदेव जैसे जैव विविधता से भरे जंगलों का विनाश आत्मघाती कदम साबित हो सकता है।
हसदेव वन क्षेत्र की हरीतिमा ही छत्तीसगढ़ की कई नदियों का जीवन स्रोत है। इन जंगलों की नमी से नदियों, तालाबों, डैमों और नहरों में पानी भरता है, जिससे हजारों गांवों के किसानों को सिंचाई जल मिलता है और शहरी क्षेत्रों में भूजल स्तर बना रहता है। यदि इसी गति से जंगलों की कटाई जारी रही, तो निकट भविष्य में छत्तीसगढ़ को जल संकट और सूखे का विकराल चेहरा देखना पड़ेगा।
कटाई का कारण
हसदेव क्षेत्र कोयले के विशाल भंडारों के लिए जाना जाता है। कोयला खनन से सरकार और बड़ी कंपनियों को राजस्व लाभ हो रहा है। विगत 14 वर्षों में इस क्षेत्र के तीन लाख से अधिक वृक्षों की कटाई कर इसे बंजर बना दिया गया है, और कटाई की प्रक्रिया अभी भी बदस्तूर जारी है।
जंगल कटने के गंभीर नुकसान
सैकड़ों गांवों के उजड़ने और हजारों आदिवासियों के बेघर होने का संकट।
क्षेत्रीय वर्षा चक्र पर प्रतिकूल प्रभाव।
बांगो डैम जैसी जल परियोजनाओं के जलस्तर में गिरावट, जिससे 120 मेगावाट बिजली उत्पादन प्रभावित होगा।
हसदेव और इसकी सहायक नदियों के सूखने का खतरा।
खेतों, उद्योगों और घरों के लिए भूजल स्रोत का खत्म होना।
खनन से भूजल की गुणवत्ता खराब होकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ सकती हैं।
छत्तीसगढ़ का बड़ा भूभाग फिर से सूखाग्रस्त होने की कगार पर।
किसानों की पैदावार में गिरावट से व्यापार और अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर।
मानव-वन्यजीव संघर्ष में वृद्धि और जैव विविधता का व्यापक विनाश।
तापमान वृद्धि, कार्बन उत्सर्जन में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन का तेज असर।
उपाय और सुझाव
सरकार को चाहिए कि वह जनता और प्रकृति के हित में तुरंत हस्तक्षेप कर इस विनाशकारी कटाई पर रोक लगाए। विकास के वैकल्पिक साधन हो सकते हैं, लेकिन यदि जंगल और पर्यावरण नष्ट हो गए तो किसी भी आर्थिक तरक्की का कोई मतलब नहीं बचेगा। मानव जीवन के लिए सबसे अनिवार्य चीजें – शुद्ध हवा और पानी – की रक्षा करना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर ये ही नहीं बचे, तो विकास की ऊंची इमारतें भी बेमानी हो जाएंगी।
जनहित में जारी काजल कसेर समाज एवं पर्यावरण कार्यकर्ता, जाँजगीर (छत्तीसगढ़)












