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59 में मात्र 17 पास, बाकी फेल! देश के सातवें व प्रदेश के पहले भारतीय हाथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान की ये कैसी दुर्दशा पखवाड़े भर में आते हैं प्राचार्य, शिक्षकों की मनमानी भी चरम पर।

ब्यूरो रिर्पोट जाज्वल्य न्यूज जांजगीर चांपा::पूर्व विधायक मोतीलाल देवांगन की सबसे बड़ी उपलब्धि लछनपुर में संचालित आईआईएचटी है। उनके प्रयास से ही एक दशक पहले यह संस्थान प्रारंभ हुआ था, लेकिन दुर्भाग्य है कि देश के सातवें व प्रदेश के पहले भारतीय हाथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। हैरान करने वाली बात ये है कि इस साल कॉलेज के करीब 15 से 17 बच्चे ही पास हुए हैं, जबकि इतने बड़े कॉलेज में यहां महज 50-60 विद्यार्थी ही अध्ययनरत है। बताया जा रहा है यहां नियमित शिक्षकों की पहले ही कमी है, वहीं जो शिक्षक है भी उनकी भी मनमानी चरम पर है, जिसके चलते बच्चों का समय पर कोर्स भी पूरा नहीं हो पा रहा है।
जांजगीर चांपा के पूर्व विधायक मोतीलाल देवांगन के प्रयास से ही चांपा में भारतीय हाथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान की शुरुआत वर्ष 2007 में पुराने कॉलेज में हुई थी। वर्तमान में संस्थान का संचालन ग्राम लछनपुर में बने नए भवन में हो रहा है। यहां हैण्डलूम टेक्सटाइल्स टेक्नालॉजी में तीन वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम संचालित है। देखरेख के अभाव में प्रदेश का एकमात्र कॉलेज अब आखिरी सांसे गिन रहा है, क्योंकि यहां गिनती के ही बच्चे बच गए है। बताया जा रहा है यहां प्रथम वर्ष में सिर्फ 21 विद्यार्थी ही अध्ययनरत हैं, जबकि द्वितीय वर्ष में 20 और फाइनल इयर में सिर्फ 18 विद्यार्थी ही शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहां पढ़ाई के स्तर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा रहा है कि इस साल प्रथम वर्ष में 7, द्वितीय वर्ष में 3 और फाइनल इयर में भी सिर्फ 7 बच्चे ही पास हो सके हैं। नाम न छापने की शर्त में यहां पढ़ने वाले छात्रों ने शिक्षकों की दास्तां खुलकर बयां की। उन्होंने बताया कि यहां फैबरिक स्ट्रक्चर, वीविंग थ्योरी और कलर कांस्पेट विषय संचालित है, लेकिन यहां नियमित शिक्षकों का टोटा शुरू से ही है। उपर से शिक्षकों के कॉलेज आने-जाने का कोई समय ही नहीं है। देर से आना और जल्दी जाना इनके फितरत में शुमार है। यहां के खुद प्राचार्य पखवाड़े भर में एकबार कॉलेज आते हैं, जिसके चलते यहां मनमानी चरम पर है। पहले यहां उपस्थिति के लिए बायोमैट्रिक मशीन लगी थी, लेकिन अब उसे भी निकाल दिया गया है।
आंसर सीट जांचने में भेदभाव
बताया जा रहा है यहां परीक्षा का आंसर सीट स्थानीय स्तर पर ही जांच होती है, जिसमें भेदभाव बरती जा रही है। कई छात्र ऐसे भी है जो कक्षा बारहवीं व प्रथम वर्ष में टॉप किया है, लेकिन द्वितीय व तृतीय वर्ष में वह फेल हो गया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि आंसर सीट जांच करने वाले शिक्षकों की जिसकी अच्छी बनती है वो आसानी से पास हो जाते हैं और जिनकी नहीं बनती वो फेल हो जाते हैं। इस तरह बच्चों के भविष्य से यहां खिलवाड़ किया जा रहा है। इस अव्यवस्था से त्रस्त हो चुके कुछ छात्रों ने हमारे पास आकर कॉलेज की अव्यवस्था पर प्रकाश डाली। स्थानीय जनप्रतिनिधियों का भी दायित्व बनता है कि वो समय-समय पर कॉलेज जाकर यहां की समस्याओं से रूबरू हो, लेकिन इसकी चिंता आखिर किसे है।
अपने हाल पर छोड़ दिया
देश के सातवें व प्रदेश के पहले भारतीय हाथकरघा प्रौद्योगिकी संस्थान की शुरूआत वर्ष 2007 में हुई थी। तब से यहां कई बैच पास होकर निकल चुका है, लेकिन उनमें से अधिकांश बच्चे बेरोजगार घूम रहे हैं। प्रदेश के हाथकरघा व ग्रामोद्योग विभाग में अर्से से भर्ती नहीं हुई है, जिसके कारण उपसंचालक, सहायक संचालक, उप हाथकरघा निरीक्षक, हाथकरघा निरीक्षक, रेशम विभाग में वरिष्ठ रेशम अधिकारी सहित अधिकांश पद खाली है। यदि इन विभागों में हर साल भर्ती होती तो आईआईएचटी से पास होकर निकलने वाले छात्रों को नौकरी के लिए मशक्कत नहीं करनी पड़ती। लेकिन इसके लिए प्रयास करने वाला भी कोई नहीं है। पूर्व विधायक ने भी कॉलेज प्रारंभ कराने के लिए पहल करने के बाद इसे अपने हाल पर छोड़ दिया है।
घूमते रहते हैं बच्चे
जिन बच्चों की उपस्थिति 75 प्रतिशत से कम है उन्हें परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाता। बच्चे कॉलेज में पढ़ने रुचि नहीं लेते। क्लास के समय में वो घूमते रहते हैं। इसके लिए पालकों को नोटिस भी भेजा गया है। शिक्षक समय पर कॉलेज पहुंचते हैं। मेरे पास अतिरिक्त प्रभार है, जिसके चलते समय मिलने पर ही चांपा कॉलेज जाया जाता है। कॉलेज में किसी तरह की अव्यवस्था नहीं है।
-डोमू धकाते, प्राचार्य आईआईएचटी चांपा

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