लोकतंत्र को अनदेखा कर,बदले की राजनीति के कुचक्र में फंसता समाज स्वामी सुरेन्द्र नाथ……….
क्या देर से मिलने वाला न्याय सामाजिक व्यवस्था के लिए घातक है ।

ब्यूरो रिर्पोट जाज्वल्य न्यूज़ ,जांजगीर चांपा।
हाल ही में हुए प्रयागराज में माफिया अतीक़ अहमद और उसके भाई अशरफ की पुलिस और मीडिया की मौजूदगी में सरे आम तीन युवकों ने हत्या कर दी, अब चर्चाओं और आरोप-प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है, ये यूँ ही चलता रहेगा। जब कोई घटना घटित हो जाती है, तो उसपर हर जगह चर्चा शुरू हो जाती है, घटना क्यों घटी, जिम्मेदारी किसकी थी, आदि-आदि, लेकिन किसी भी घटना के घटित हो जाने के बाद हम उसे बदल नहीं सकते सिर्फ उससे सबक ले सकते हैं। अतीक और उसके भाई अशरफ का आपराधिक रिकॉर्ड बहुत पुराना है, न सिर्फ दोनों भाइयों का बल्कि अतीक़ का पूरा परिवार अपराध में लिप्त है, नाबालिग बेटा भी जेल में है।
जिस अतीक़ अहमद पर 100 से भी अधिक मामले दर्ज थे, जमीन से लेकर ठेका और अवैध खनन, अपहरण और हत्या के संगीन आरोपी रहे, अतीक अहमद के अपराध के अनगिनत कहानियां हैं, उसकी क्रूरता का भय ऐसा था कि सबूत हो कर भी गवाही देने वाले सामने नहीं आते थे, कोई सामने आ भी जाये तो, वो सारे आम मार दिया जाता था, इतने मामलों के बावजूद केवल एक मामले- उमेश पाल अपहरण केस में अतीक अहमद को प्रयागराज की एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया था।
उसका अत्याचार और शोषण ही लोगों के बीच आक्रोश का कारण बना, क्योंकि जो अपराधी है, वो दबंगई से शानोशौकत का जीवन जीता है, और ऐसी राजनितिक पार्टियां जो ऐसे अपराधियों को टिकिट देती हैं, उनके सिर पर हाँथ रखती हैं, उनका बल बढ़ाती हैं, ऐसी पार्टियों को, ऐसे नेताओं को सबसे पहले सिरे से नकार देना चाहिए, क्योंकि जनता ही इन पार्टियों को कभी जाति के नाम पर, कभी धर्म के नाम पर वोट देकर जिताती है, याद रखिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जनता स्वयं ही ऐसे अपराधियों को शह देती है, और ताकतवर बनाती है। सत्ता तक पहुँच कर ऐसे लोगों का मनोबल और दुगुना हो जाता है। ऐसे लोग जब पावर का दुरुपयोग करते हैं तो शासन-प्रशासन इतना लाचार क्यों हो जाता है।
यदि त्वरित न्याय नहीं मिलेगा तो निश्चित ही देश में अपराध पनपेगा क्योंकि अपराध को खत्म करने के लिए एक आम आदमी यदि हथियार उठा लेता है, तो एक नए अपराधी का जन्म होता न्याय नहीं मिलता बल्कि अपराध की दुनिया में एक नई कड़ी जुड़ जाती है। जैसा अतीक़ अहमद, का जीवन था, वो गरीब घर से था, एक तांगेवाले का बेटा था, बहुत कम पढ़ा लिखा था, लेकिन पैसों की महत्वाकांक्षा थी, धन कमाने के लिए उसने शॉर्ट कट रास्ता अपनाया जो अपराध की गलियों से होकर जाता है। जिसने मात्र 17 वर्ष की आयु में हत्या किया, जो उ.प्र. का गैंगेस्टर एक्ट के तहत गिरफ्तार होने वाला पहला अपराधी था, अपराध के मार्ग से धन मिला तो समाज में वर्चस्व स्थापित करने की भूख बढ़ी तो राजनीति का रुख किया, राजनीति ने पद, पावर, प्रतिष्ठा सब दे दिया, कुछ राजनीतिज्ञों ने ऐसे लोगों को अपने फायदे के लिए उपयोग किया, और उसने राजनीति का उपयोग खुद को प्रतिष्ठित करने के लिए किया, जिसका नतीजा है, आज अतीक़ जैसे अपराधियों का वर्चस्व बढ़ता गया, और उनके भीतर से देश संविधान और कानून व्यवस्था से भय हटता गया।
जो संविधान सभी को समानता का अधिकार देता है, इन अपराधियों ने कानून व्यवस्था को धता बताकर, राष्ट्र के संविधान का अपमान किया है, इन माफियाओं ने आपना ही संविधान स्थापित कर लिया था, इनकी समानांतर सरकार चलती थी, ये विडंबना है। लेकिन भोली भाली जनता वोट देते समय इतना विचार कहाँ करती है।
जनता को जागरूक होना पड़ेगा, अपने तुच्छ स्वार्थ( जाति-धर्म आदि) से ऊपर उठकर समाज के कल्याण करने वाले कर्मठ और समर्पित नेता को चुनिए। चुनी हुई सरकारें विकास, उन्नति और समाज को जोड़ने का काम न करें, तो आपके पास वोट की ताकत है, ऐसे लोगों को सत्ता से बाहर कीजिये। सत्ता किसी की बपौती नहीं है, समय का चक्र जब चलता है, तो बड़े से बड़े ताकतवर की स्थिति पलट देता है, इसलिए राजनीतिज्ञों को भी बदले की राजनीति करने के बजाय, संविधान और न्याय व्यवस्था के अनुसार चलना चाहिए। अन्यथा ये बदले का कुचक्र चलता रहेगा, जिसमें जनता ही शोषित होगी। समय आ गया है, जनता को जागना होगा, जब तक जनता अपनी ताकत का सही उपयोग नहीं करेगी तब तक शोषित होती रहेगी।
ज़रा सोचिए इतने बड़े माफिया डॉन को मारने वाले अति साधारण परिवार से आने वाले तीन लड़के हैं, लेकिन जिस ढंग से उन्होंने हत्या की इसमें कोई संदेह नहीं कि वे इसके स्वयं करता-धरता नहीं होंगे, किन्तु ये चिंतनीय है, कि जिस अपराध से लोग त्रस्त थे, उसे खत्म करने के लिए, अपराध का ही मार्ग यदि अख्तियार किया गया, तो अपराध कहाँ समाप्त होगा..? बस अपराधी का रूप परिवर्तित हो जाएगा। पैसा और वर्चस्व स्थापित करने के लिए युवा यदि ऐसे शॉर्ट कट अपनाने लगे तो भविष्य कैसा होगा, कल्पना करना भी भयावह लगता है।
इसलिए जो लोग सत्ता में बैठे हैं, या जिनको जनता सत्ता सौंपती है, उनका परम् कर्तव्य है, कि जनता के हित में काम करें, लेकिन सत्य ये है कि जो सत्ता में आता है, वो स्वयं का हित पहले साधता है। देश की गरीबी और बेरोजगारी अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है, ये भी एक कारण है, आपराधिक गतिविधियां बढ़ रही हैं। देश बहुत सी चुनौतियों का सामना कर रहा है, किन्तु सबसे बड़ी चुनौती है, युवा वर्ग की ऊर्जा का सदुपयोग कैसे करें।
सरकारों को देश की गरीबी दूर करने के लिए मुफ्त अनाज बांटने के बजाय, मुफ्त शिक्षा और मुफ्त स्वाथ्य सेवाएं देने की व्यवस्था करनी चाहिए। साथ ही शिक्षा ऐसे हो जिसमें व्यवसायिक शिक्षा सम्मिलित हो ताकि पढ़ कर नौकरी खोजने वाले बेरोजगारों की भीड़ नहीं बल्कि व्यवसाय कर, कोई उद्यम कर लोगों रोजगार देने वाला समूह पैदा हो, तभी लोग स्वाभिमान का जीवन जी सकेंगे।
देखा जाए तो इस पूरे प्रकरण में, वस्तुतः ऐसे आपराधिक मामलों में राजनीतिक पार्टियां और नेता सम्मिलित हैं, और सरकारी तंत्र, पुलिस-प्रशासन और न्यायिक व्यवस्था का बहुत ज्यादा धीमी गति से चलना व भ्रष्टाचार भी ऐसे मामले में जिम्मेदार है। विलम्ब से मिलने वाला न्याय अन्याय से भी घातक होता है, जो जनता के भीतर आक्रोश भरता है, और एक अपराधी को खत्म करने के लिए दूसरे अपराधी का उदय होता है, इसलिए कानून एवं न्याय व्यवस्था में अमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है, ताकि किसी भी अपराध में त्वरित न्याय मिल सके।
देश में लगभग पाँच करोड़ केस लंबित हैं, हमारी पुलिस फोर्स भी देश की जनसंख्या के अनुपात में कम हैं और न्यायाधीशों की संख्या कम है ही, इसलिए न्यायिक व्यवस्था में बड़े स्तर पर रिफॉर्म की आवश्यकता है। कानून व्यवस्था में ऐसे बदलाव करने चाहिए कि कोई भी कानून का दुरुपयोग न कर सके, आम हो या खास न्याय व्यवस्था सभी के लिए समान हो, और सबसे ज़रूरी बात किसी भी केस को पूर्ण करने की एक अंतिम तारीख(डेड लाईन) निर्धारित की जानी चाहिए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाई जा सके। सुजाव बहुत से हैं लेकिन इन पर अमल सरकारों को ही करना है, कोई भी सरकार तभी कोई बड़ा परिवर्तन करने की पहल करेगी जब राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति होगी, और वे निजी नफ़े नुकसान से ऊपर उठकर सोचेंगे।











