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वक्त ने करवट क्या बदली, सारे अपनों के रंग बदल गए। कभी करीबी भी पहचानते नहीं थे, आज वो दूर के लोग भी अपने बन गए।।

सुन्दर पंक्ति
वक्त ने करवट क्या बदली,
सारे अपनों के रंग बदल गए।
कभी करीबी भी पहचानते नहीं थे,
आज वो दूर के लोग भी अपने बन गए।।

अपने होकर भी गैरों जैसा व्यवहार करने वाले सभी,
वो सारे अनजान रिश्तेदार आज संगे संबंधी बन गए।
चंद रुपए की बढ़ोत्तरी क्या हुई जिंदगी में,
गैर भी अब अपने नजदीकी रिश्तेदार बन गए।।

जो दूर से देखकर रास्ते बदल किनारा कर लेते थे,
आज ढूंढ ढूंढकर सामने से परिचय बताते हैं।
वाह रे पैसा की चमक जो वक्त नहीं देते थे कभी,
आज हाथ जोड़ इंतजार करते हैं और वक्त के पाबंद बन गए ।।

वक्त के बदलते ही सब बदलने लगे,
जो घमंड अकड़ रौब दिखाते चलते थे।
जिन्हें कोई वास्ता नहीं हुआ करता था हमसे,
अब वो करीबी मित्र और घनिष्ट संबंधी बन गए।।

लेखिका – डॉ सरिता चन्द्रा (छ. ग.)

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