क्या देश लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत जा रहा है…..? क्या राजनीतिक मतभेद देश की छवि और देश के मुखिया के सम्मान औऱ सुरक्षा से ऊपर होते जा रहे हैं….. मेरा प्रश्न देश के प्रत्येक नेता और प्रत्येक नागरिक से है….

जांजगीर-चांपा::जाज्वल्य न्यूज़::हम भारत के लोग पूरी दुनिया से अलग ही हैं, चाहे भौगोलिक दृष्टि से देखें या सांस्कृतिक दृष्टि से, हमारे संस्कार मूल्यों को सर्वोपरि रखने की बात सिखाते हैं, देश की राजनीति भी संवैधानिक दायरे के भीतर ही सिमटी रहती है। राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन मनभेद नहीं होना चाहिए। देश प्रगति पथ पर अग्रसर है, सामाजिक चेतना के साथ-साथ लोगों में राजनीतिक चेतना तुलनात्मक रूप से ज्यादा है, जिसे जगाने में सोशल मीडिया का बहुत बड़ा योगदान है।
जब हम ऐसे ग्लोबल युग में हैं जहां किसी बात के तूल पकड़ते देर नहीं लगती ऐसे में बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों की और राजनीतिक सत्ता के लोगों की जिम्मेदारी पहले से कई गुना ज्यादा बढ़ गई है क्योंकि आपका पद और आपके पद की शक्ति देश के संविधान ने प्रदान किया है और आप जनता के प्रति जवाबदेह हैं, इसलिए आपके द्वारा किये गए हर क्रियाकलाप पर जनता की दृष्टि रहती है।
हाल ही में प्रधानमंत्री जी के पंजाब दौरे की घटना ने देश के मत विभाजन और विरोध को बड़ी ही निम्न स्तर पर व्यक्त किया है। मैं किसी पार्टी विशेष का पक्षधर नहीं हूं और ना ही किसी का विरोधी हूँ, मैं तो समाज का सेवक हूं एक साधु हूं, और यदि कुछ अनुचित होता है तो उस पर मौन साधना एक सच्चे साधु को शोभा नहीं देता। मैं पिछले दो दिनों से देख रहा हूं प्रधानमंत्री जी का पंजाब दौरा विफल होने के पश्चात लोग बड़ी निम्न स्तर पर जाकर टिप्पणियां कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर मिम्स शयेर किये जा रहे हैं, ऐसा करने वाले ज्यादातर लोग सार्वजनिक जीवन में हैं, ये ऐसे नेतागण हैं जो राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखते हैं। क्या वास्तव में विरोध इतने चरम पर है कि हम अपने प्रधानमंत्री को किसी पार्टी विशेष के मुखिया का ही दर्जा देते हैं।
प्रधानमंत्री पूरे देश के प्रधान हैं वह देश के मुखिया हैं, किसी पार्टी विशेष के ही नेता नहीं हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और उनका सम्मान भारत के हर नागरिक को करना चाहिए। इस देश ने अपने दो-दो प्रधानमंत्रियों को खोया है फिर भी यदि
सुरक्षा में चूक हुई है तो ये बहुत बड़ी लापरवाही है, चाहे जिस किसी की भी हो, जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
देश के प्रधानमंत्री को करीब बीस-पच्चीस मिनट तक रोक कर फ्लाई ओवर पर रास्ता क्लियर होने की राह देख रहे थे क्या वाकई किसी अनहोनी की प्रतीक्षा कर रहे थे हमारे एसपीजी के जवान..? ये निर्णय क्षमता की चूक है, लेकिन किसी राज्य में प्रधानमंत्री का ही रास्ता रोकना विरोध करने का उचित तरीका नहीं, जिस स्थान पर ये सारी घटनाएं हुईं वो पाकिस्तान से बहुत ज्यादा दूरी पर नहीं था और फ्लाई ओवर जैसे असुरक्षित स्थान पर प्र.म. का रुकना किसी भी अनहोनी को आमंत्रित कर सकता था। राज्य पुलिस की घोर लापरवाही तो है ही एसपीजी के तत्काल निर्णय लेने में चूक को भी दर्शाता है। यदि रास्ता खाली नहीं मिला तो काफिले को तत्काल वापस ले लेना था।
खैर जांच समितियों का गठन किया जा चुका है, जांच की रिपोर्ट जो कुछ भी आए मैं उस संदर्भ में जाना नहीं चाहता मैं तो उन बचकाने टिप्पणियों से हैरान हूं कि हमारे नेता यह भी भूल गए हैं कि प्रधानमंत्री किसी पार्टी विशेष का मंत्री नहीं होता बल्कि वह पूरे देश का प्रतिनिधि होता है, और पूरे देश का मुखिया होता है जिसकी सुरक्षा और सम्मान सर्वोपरि है। राजनीति में वैचारिक मतभेद रहते हैं, लेकिन एक संवैधानिक दायरे में रहकर, गरिमा का ख्याल रखते हुए टिप्पणियां करना आपकी राजनीतिक परिपक्वता को दर्शाता है।
प्रथम दृष्टया प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का विफल होना राज्य शासन की मंशा पर प्रश्न उठाता है..? और भी कई खामियां है जिन का विश्लेषण उसी दिन से किया जा रहा है जांच समितियां बैठाई गई है मुझे नहीं पता इन जांच समितियों की रिपोर्ट में कौन दोषी है यह अवश्य बाहर आना चाहिए, केंद्रीय अभिकरण हो या राज्य का अभिकरण हो आधिकारिक रूप जिम्मेदार हर व्यक्ति की जवाबदेही न सिर्फ तय होनी चाहिए बल्कि कठोर कार्यवाही भी होनी चाहिए।
बेशक देश के राज्यों में अलग पार्टियों की सरकारें हैं लेकिन सभी ने यदि ये कहा होता कि सच में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम का विफल होना अनुचित है उन्हें किसी फ्लाई ओवर पर रोका जाना असुरक्षित है तो देश की एकता परिलक्षित होती किन्तु इतनी परिक्वता किसी में नही।
उपहासात्मक बयानों से घटना की गम्भीरता कम होती है, लेकिन विडम्बना तो यह है कि हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने भी “मैं जिंदा लौट आया” जैसी बात कहकर विपक्ष को अवसर तो दे ही दिया, यदि बात घर के घर में रह जाती तो कोई बात न थी पर यह अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहुँचेगी तो क्या भारत का मान बढ़ेगा..? लेकिन क्या यह बयान आधिकारिक रूप से लिख कर प्रधानमंत्री जी ने मुख्यमंत्री को भेजवाया था यह भी जांच का विषय ही ये बात इतनी कैसे फैल गई..?
देश की गरिमा सर्वोपरि है इसलिए हमारे माननीय सर्वोच्च पदाधिकारियों को ऐसी किन्ही बयानों से बचना चाहिए जिससे भारत की छवि विश्व पटल पर खराब न हो।
देश ने बहुत सी विषम परिस्थितियां देखी है, अनहोनी घटनाओं में दो अनमोल मोतियों को खोया है इसलिए ऐसी कोई लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिये जिससे देश पर कोई संकट आये।











