सन्तों को शालीन और तटस्थ होना चाहिए, देश की आज़ादी के लिए गाँधी ने भी त्याग किया और सावरकर ने भी और बहुतों ने किया है, तभी हम सब आज आजादी की सांस ले रहे हैं, महापुरुषों की आलोचना करते-करते अपमानित करने लगे ऐसे लोगों को माँ भारती माफ नहीं करेगी।

जांजगीर-चांपा::जाज्वल्य न्यूज़::भारत सन्तों की भूमि है, सन्त सहज, सरल, परम् विवेकशील और ज्ञानी होते हैं। सन्त की वाणी में ताकत के साथ-साथ शालीनता होती है। जिन्हें अपने राष्ट्र के इतिहास की गहराई का भान न हो, जो महापुरुषों के प्रति पक्षपाती होकर, अपमानसूचक वकतव्य देते हों, निश्चित ही वे सन्त की श्रेणी में नहीं आते।
इस देश को महान इसलिए कहा जाता है क्योंकि विविधता में एकता का पुट मिलता है। देश के स्वतंत्रता संग्राम में हर सेनानी का योगदान महत्वपूर्ण माना जाता है। जितनी मात्रा में गाँधी के योगदान का महत्व है, उतना ही सुभाष चंद्र बोस का, उतने ही वीर सावरकर महत्वपूर्ण हैं, उतना ही महत्व रखते हैं भगत सिंह और हर वो व्यक्ति जिसके कारण हम स्वतंत्रता की ओर बढ़ते गए और कड़ियाँ जुड़ती गई, क्योंकि किसी एक के ही प्रयास से स्वतंत्रता मिलना सम्भव न था, परन्तु अपने-अपने स्तर पर हर किसी के प्रयासों ने बदलाव लाया। इसलिए हृदय की गहराई से हम सभी को जिन्हें हम जानते हैं और उन्हें भी जो बहुत प्रसिद्ध नहीं हो सके सभी लोगों का सम्मान करना चाहिए जिनके त्याग और बलिदान से हम स्वतंत्र भारत में सांस ले रहे हैं।
एक व्यक्ति के रूप में हो सकता है गाँधी जी से कुछ भूल हुई हो जिसकी हम आलोचना कर सकते हैं, हमारा संविधान हमें ये अधिकार देता है, लेकिन किसी को अपमानित करने का अधिकार नहीं है, विशेषकर उस व्यक्ति का जो एक हस्ती के रूप में तभी स्थापित हुआ जब उसने अनगिनत त्याग किये। कुछ तो किया होगा गाँधी ने कि पूरा देश उनके पीछे चल पड़ा…! हम क्या हो चुका…, पर चर्चा करने के स्थान पर देश को कैसे आगे ले जाया जाए.., इस पर मंथन करते तो ज्यादा श्रेयस्कर रहता।
स्वयं को तथाकथित सन्त कहने वाले, किसी की मत्यु को उचित ठहराए तो सन्देह होता है कि वो सन्त है या भगवा वस्त्रों में कोई और ही है…?? हम सब जानते हैं मृत्यु तो अकाट्य सत्य है सभी की होनी ही है, लेकिन देश ही नहीं विश्व के लिए आदर्श माने जाने वाले गाँधी की मृत्यु को ठीक बताना और मारने वाले की सराहना करना आपकी संकुचित सोच, संस्कारहीनता और ज्ञानहीनता को प्रदर्शित करता है। केवल प्रसिद्धि पाने के लिए धर्म को राजनीति में मिलाना न्यायसंगत नहीं है। ये राजनीतिक स्वार्थ में नेताओं द्वारा किया जाता है, सन्त किसी को गाली नहीं देते बल्कि धर्म के प्रति जागरूक करते हैं।
सकारात्मक समालोचना, तथ्यों के गहराई को जानने के लिए तर्क-वितर्क आवश्यक है किन्तु महापुरुषों के अपमान को जायज नहीं ठहराया जा सकता। जितनी मात्रा में संविधान ने हमें स्वतंत्रता प्रदान की है उतनी ही मात्रा में देश के प्रत्येक नागरिक को सम्मान और गरिमा से जीने का हक भी दिया है। एक आम नागरिक का भी अपमान उचित नहीं हो सकता। फिर मृत्यु के बाद किसी महापुरुष की निंदा अनुचित है, हम नहीं जानते कि किन-किन परिस्थितियों में देश का विभाजन करना पड़ा, ये भी नहीं जानते कि गाँधी जी को प्रेम करने वाले गोडसे जी ने उन्हें मारने का निर्णय क्यों लिया..? फिर हम पक्षपाती होकर क्यों बात करें, क्या किसी धर्म संसद में यही चर्चा का विषय होना चाहिए..? चिंतनीय विषय है…!!
देश का युवा यदि ऐसे ही लोगों का अनुसरण करने लगा, अपना आदर्श माने या प्रेरणा स्रोत बनाये तो देश के सौहार्द्र में बाधा पहुँचेगी…! सावधान माथे पर तिलक लगा लेने मात्र से या संस्कृत के श्लोकों का गायन कर लेने वाले को और गैरिक वस्त्र में देखकर ही सन्त न मान लेना, ज्ञान की गहराई और व्यवहार में शालीनता ही संतत्व की असली पहचान है..!! हर भगवाधारी साधु संत हो अवशयक नहीं है..!! वास्तविक साधु-संत वे हैं, जो राष्ट्र की सोई हुई चेतना जगा दे, धर्म को राष्ट्र की उन्नति का आधार बनाकर जन-जन को आंदोलित कर दे ऐसे सन्तों को नमन करता हूँ।