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गरीबों का पक्का मकान का सपना रह सकता अधूरा।

जांजगीर-चांपा :: जाज्वल्य न्यूज़ ::राज्य के उन तमाम बेघर लोगों का सपना अब शायद ही पूरा हो पाए, जो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत बनने वाले पक्के मकानों की राह देख रहे थे। केंद्र सरकार के राज्य को आवंटित 7 लाख 81 हजार 999 मकान बनाने के प्रोजेक्ट को वापस लेने का निर्णय लेकर बेघर लोगों को मायूस किया है।

अब बेघर और गरीब लोग राज्य सरकार से उम्मीद लगाए हुए हैं कि अगर वह इस योजना में अपने अंश का भुगतान कर देती है तो समस्या का निदान हो जाएगा।

 

दूसरी तरफ इस मामले में राज्य सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए कहा है कि चूंकि यह योजना केंद्र की है, इसलिए वही पूरा खर्च वहन करे। बेघरों से जुड़े इस मामले में बेहतर होगा कि राजनीतिक टकराव को किनारे रखते हुए सरकार संवेदनशीलता से विचार करे। विवाद करने से राजनीतिक लाभ हो सकता है, लेकिन राज्य के बेघरों का हित नहीं सध सकता है। सरकारों को सकारात्मक ढंग से विचार करना चाहिए। समग्र रूप से स्पष्ट है कि पैसा वापसी तथा काम नहीं होने से राज्य का नुकसान होता है।

 

आजादी के बाद दो से तीन दशक तक केंद्र-राज्य संबंध मधुर रहे, लेकिन राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकार बनने के साथ संबंधों में कटुता बढ़ती चली गई। अलग-अलग दलों वाली केंद्र-राज्य सरकारें अपनी शक्तियों का प्रयोग एक-दूसरे को नीचा दिखाने में करने लगीं। चाहे वह केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय योजनाओं में अंश को कम करना, योजनाओं का नाम बदलना, पायलट प्रोजेक्ट में शामिल न करना, समय पर धन न उपलब्ध कराना, जांच एजेंसियों का प्रयोग आदि हो या राज्य सरकारों द्वारा केंद्र की महत्वाकांक्षी योजनाओं में बाधा उत्पन्न करना, ठीक से क्रियान्वयन न करना हो।

 

आयुष्मान भारत योजना, मिड डे मील योजना, मनरेगा योजना, सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन आदि ऐसी ही योजनाएं हैं, जिनमें उपरोक्त विसंगतियों को किसी न किसी रूप में देखा जा सकता है। कई बार केंद्र-राज्य की योजनाओं में दोहराव, विरोधाभास और अस्पष्टता के चलते भी टकराव हो जाता है। केंद्र का राज्यों के साथ व्यवहार संविधान प्रेरित होना चाहिए, न कि पार्टी की विचारधारा से। प्रधानमंत्री आवास योजना में जो विसंगतियां आईं, उनका हल चर्चा के माध्यम से निकाला जाना चाहिए।

 

केंद्र को उदारतापूर्वक राज्य का बकाया हिस्सा देना चाहिए तथा राज्य को भी अपनी नीतियों में केंद्रीय योजनाओं को अपनी स्थानीय नीतियों के समकक्ष स्थान देना और धन की व्यवस्था करनी चाहिए। संवैधानिक पदों पर बैठे आदरणीयों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि व्यक्तिगत और पार्टी प्रेरित टकराव जनहित में बाधक न बने। आवास योजना के नाम में भले ही प्रधानमंत्री शब्द जुड़ा हो, प्रत्येक बेघर का सपना है कि उसका अपना घर हो। सरकारें दायित्व से नहीं भाग सकतीं।

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