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एक ऐसा शिक्षक जो बच्चे को पढ़ाने के साथ आसपास के वातावरण को सुगम बनाए रखने कर्मठ हैं।

ब्यूरो रिर्पोट जाज्वल्य न्यूज जांजगीर चांपा::आज हम ऐसे युग में रह रहे हैं जहां व्यक्ति को एक दूसरे के लिए समय ही नहीं और वह भी जब छुट्टी का समय हो तो और भी समय नहीं रहता! ऐसे में हमारे बीच में कुछ ऐसे शिक्षक भी हैं जो ग्रीष्म की भीषण गर्मी में भी अपने शरीर के तपने की परवाह न करते हुए समाज सेवा के कई कार्यों से जुड़े हुए हैं!

इन्हीं शिक्षकों में अवधेश राठौर व्याख्याता धुरकोट का नाम सबसे आगे रखा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी!श्री अवधेश जी के कार्यों की जितनी भी प्रशंसा की जाए वह कम ही है उन्होंने इस ग्रीष्मकालीन अवकाश का सदुपयोग करते हुए अपने विद्यालय में कई प्रकार के कार्यों की रूपरेखा स्वयं तय की और उन रूपरेखा के अनुरूप एकला चलो की नीति का पालन करते हुए कर्म स्थल पर स्वयं पहुंच गए आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि विद्यालयों में शासन कई प्रकार की सुविधाएं तो देती है परंतु उन सुविधाओं को अपने वास्तविक रूप में परिणित करना कर्मचारियों के ही बलबूते से संभव हो सकता है इन्हीं सब बातों का अनुसरण करते हुए अवधेश जी ने कर्म पर ध्यान दिया. श्री कृष्ण ने महाभारत में अर्जुन को कहा था कि है अर्जुन तुम कर्म करो फल की चिंता मत करो वह इस मुख्य वाक्य को अपने जीवन में उतारना चाहते हैं और इसीलिए उन्होंने अपना पूरा जीवन विद्यालय को समर्पित कर दिया!अभी गर्मी की छुट्टियों में जहां सभी शिक्षक सुकून भरे पल दूर वादियों में बिता रहे थे वही अवधेश अपने विद्यालय पहुंच गए उन्होंने देखा कि काऊकैचर जिसका निर्माण उन्होंने अपने खुद के खर्च से किया था

वह पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है इस बात का जायजा लेते हुए उन्होंने स्वयं अपने कर्म पर ध्यान दिया और बिना किसी की सहायता से वे अकेले ही चले और सारा सामान खरीद कर उसका का निर्माण खुद ही उन्होंने विद्यालय जाकर किया वे यही नही रुके बल्कि भारी वाहन अंदर आने के लिए एक और गेट लगवा दिए अब विद्यालय में दो गेट है जिसमे एक में भारी वाहन और एक में हल्के वाहन आसानी से आ जा सकते उनके इस कार्य से गांव वाले भी हतप्रद हो गए विद्यालय के सभी छात्र अपने शिक्षक को इस प्रकार अकेले कर्म में रत होते देखकर आश्चर्यचकित हो गए और उन्होंने भी सेवा भाव दिखाते हुए अपने शिक्षक का पूरा सहयोग दिया विद्यालय की प्राचार्य श्री मती सुषमा स्वरूप जी का मानना है कि विद्यालय में शिक्षक अपने कार्य करने के बाद अपने घर चले जाते हैं लेकिन कुछ शिक्षक ऐसे हैं जो अपने कर्म स्थल को स्वर्ग का स्वरूप देना चाहते हैं उन शिक्षकों में अवधेश का नाम सबसे आगे है. अवधेश से जब इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि बचपन से ही उनके पिता माता काली की साधक थे भ्राता स्वामी सुरेंद्र नाथ समर्पित संत है उनके सानिध्य लाभ का प्रभाव से मन में यह बात आई कि क्यों ना समाज सेवा बिना स्वार्थ के किया जाए तब जाकर उन्हें सबसे पहले अपने कर्म क्षेत्र का ख्याल आया और बिना किसी लाग लपेट के वह यहां की सेवा करने में जुट गए उन्होंने बताया कि उनके साथ नवल जी सामाजिक सेवक ,विजय शंकर पालक ग्राम वासियों संतोषी पैगवार, यस,विशाल ,विश्राम,मंगल ने इस कार्य में महती सहभागिता दी छात्र-छात्राओं को उन्होंने अपनी तरफ से आगे शिक्षा को बनाए रखने के लिए कई प्रकार के मदद किए हैं और यह परंपरा आज से नहीं यह परंपरा सन 2002 से जब प्रथम नियुक्ति हाई स्कूल सिवनी में हुई तब से जारी है उनके अनेक विद्यार्थी आज बैंक , बीमा, इंजीनियर, डॉक्टर,वकील, पत्रकार,सरपंच,पुलिस,दुकानदार,चौकीदार,गाड़ी मैकेनिक, नर्सिंग सभी क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा से गौरांवित कर रहे है जिसका उन्होंने कभी भी प्रचार और प्रसार नहीं किया है इसी प्रकार वे जब अध्यापन कार्य में रत रहते हैं तो वह मोबाइल से किसी से बात भी नहीं करते इस बात को लेकर घर वाले भी उनसे रुष्ट रहते हैं पर वे उनके समाज व अपने कर्म रत में जुड़े होने को देखकर उनका सम्मान भी करते हैं! समाज को आज अवधेश राठौर जैसे शिक्षकों की आवश्यकता है जिनके अच्छे कर्मों के कारण गांव ही नहीं प्रदेश में भी अपनी पहचान स्थापित किए है और उनके पढ़ाई कई बच्चे आज उनको भगवान के समान उनकी पूजा करते हैं और ये आज भी उनसे जुड़कर उनका मार्गदर्शन करते है

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